Sunday, 29 August 2021

श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 2021 रॉयल डिजी पब्लिक स्कूल राजनगर मधुबनी बिहार।

श्रीकृष्णं वन्दे जगद्गुरुं 

             ".........हम जो भी कर्म करते हैं उसका कुछ न कुछ फल होता है और इस कर्मफल के उपभोग के लिए मनुष्य जीवन, मरण और पुनर्जन्म के चक्कर में पड़ा रहता है। अर्थात कर्म के माध्यम से "मोक्ष" संभव नहीं है" -----ऐसा मानना था प्राचीन ऋषिमुनियों का।इसलिए उन्होंने "संन्यास" की परिकल्पना की। मुक्ति पाने के लिए लोग संन्यस्त होने लगे। कुछ लोग संन्यास के बहाने पारिवारिक उत्तरदायित्व से पलायन करने लगे। कर्मठ लोगों की उपेक्षा होने लगी। समाज का भौतिक विकास थम सा गया।  
           
               ऐसे समय में श्रीकृष्ण आए। गीतोपदेश और निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत लेकर। उन्होंने कहा कि कर्म बंधनकारी नहीं है। कर्म तो जीवन है। जो संन्यासी हैं, वो भी कुछ न कुछ कर्म तो करते ही हैं ,हवन-यजन करते हैं, ध्यान धारणा, आसन प्राणायाम करते हैं, खाते पीते हैं, उठते बैठते हैं। कर्म का त्याग असंभव है। कर्म का फल बंधनकारी है। कर्मफल के कारण लोग अनैतिक और पापपूर्ण कर्म में लिप्त रहते हैं। इसलिए उन्होंने कर्मफल त्याग और निष्काम कर्मयोग की बात कही ---

        कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन् ।
        मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।
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अर्थात आप कर्म करने में अपना अधिकार समझें, फल में नहीं। और ये भी मत सोचें कि जब फल में मेरा अधिकार है हीं नहीं तो कर्म करें ही क्यों। कर्म अविराम और सतत होना चाहिए (सातत्य योग)।

               निष्काम कर्मयोग और संन्यास योग एक ही चीज है। दोनों मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। 

                निष्काम कर्मयोगी की कर्मगत तन्मयता समाधि के कोटि की होती है। 

          श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🙏
रॉयल डिजी पब्लिक स्कूल राजनगर मधुबनी बिहार।
संस्थापक
 अमरेन्द्र सिंह

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